Women Rights – देशभर में बेटियों के संपत्ति अधिकार को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है। खासकर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में हुए 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटे के समान अधिकार दिए गए। लेकिन हाल ही में एक हाईकोर्ट के फैसले ने इस अधिकार पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। यह मामला एक ₹10 करोड़ की प्रॉपर्टी से जुड़ा था, जिसमें बेटियों को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला और कोर्ट ने पिता की वसीयत को प्राथमिकता दी। इस फैसले के बाद महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों पर एक नई बहस छिड़ गई है। कई सामाजिक संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जताई है कि क्या यह फैसला महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा झटका है?
क्या है पूरा मामला?
इस विवाद की शुरुआत एक परिवार की ₹10 करोड़ की संपत्ति से हुई। पिता ने अपनी वसीयत में सारी संपत्ति अपने बेटे के नाम कर दी थी और बेटियों को कोई हिस्सा नहीं दिया। बेटियों ने कोर्ट में याचिका दायर की कि उन्हें भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बराबरी का हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने वसीयत को सही ठहराया और बेटियों को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं दिया।
कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें:
- पिता ने कानूनी रूप से वसीयत बनाई थी, जो वैध मानी गई।
- बेटियों ने 2005 के संशोधन का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने माना कि अगर वसीयत वैध है तो वह उत्तराधिकार कानून पर भारी पड़ती है।
- बेटियों की याचिका खारिज की गई और बेटे को पूरी संपत्ति का उत्तराधिकारी माना गया।
बेटियों को क्यों नहीं मिला हिस्सा?
मुख्य कारण:
- पिता की लिखित वसीयत पहले से तैयार थी।
- सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों में भी यह स्पष्ट किया गया है कि वैध वसीयत होने पर उत्तराधिकार नियम लागू नहीं होते।
- बेटियों ने दावा तो किया लेकिन वसीयत को झूठा साबित करने के पर्याप्त साक्ष्य नहीं दे सकीं।
महिला अधिकारों के लिए कितना खतरनाक है ये फैसला?
इस फैसले से यह संदेश जा सकता है कि यदि कोई पिता बेटियों को जानबूझकर संपत्ति से बाहर रखे और वैध वसीयत बना दे, तो बेटी को कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाएगा। इससे बेटियों के हक पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है।
महिलाओं के लिए संभावित खतरे:
- पारिवारिक संपत्ति से बेटियों को बाहर किया जा सकता है।
- महिला सशक्तिकरण के प्रयासों को झटका लग सकता है।
- कानूनी प्रक्रिया में महिलाओं को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है।
वास्तविक जीवन का उदाहरण: मीनाक्षी का मामला
गाजियाबाद की रहने वाली मीनाक्षी शर्मा ने ChatGPT से अपनी बात साझा की। उनके पिता के पास 5 करोड़ की संपत्ति थी, जिसमें उन्होंने सिर्फ अपने बेटे को वसीयत में रखा। मीनाक्षी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उन्हें भी यही जवाब मिला – वसीयत वैध है। आज वे किराए के मकान में रह रही हैं और इस फैसले के बाद मानसिक रूप से टूट चुकी हैं।
उनका कहना है, “पढ़ाई में अव्वल रहने के बावजूद हमें हमारी मेहनत का फल नहीं मिला। सिर्फ इसलिए कि हम बेटियां हैं?”
क्या है वसीयत और उत्तराधिकार कानून का अंतर?
विषय | वसीयत (Will) | उत्तराधिकार कानून (Succession Act) |
---|---|---|
नियंत्रण | व्यक्ति की इच्छा पर आधारित | कानून द्वारा तय होता है |
हिस्सेदारी | पूरी तरह इच्छानुसार दी जा सकती है | सभी बच्चों को बराबरी का हिस्सा |
बदलाव की संभावना | किसी भी समय बदली जा सकती है | नहीं बदली जा सकती |
विवाद की स्थिति | कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है लेकिन कठिन होता है | अदालत तय करती है कि किसे क्या हिस्सा मिलेगा |
क्या करें बेटियां अगर वसीयत में नाम न हो?
यदि किसी बेटी को वसीयत में हिस्सा नहीं दिया गया है, तो उसे निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- वसीयत की वैधता को चुनौती दें यदि कोई शक है कि वसीयत दबाव में बनाई गई थी।
- कानूनी सलाह लें और कोर्ट में याचिका दाखिल करें।
- अगर संपत्ति पैतृक है और वसीयत नहीं है, तो उत्तराधिकार कानून के तहत बराबर हिस्सा लें।
क्या अब कानून में बदलाव की जरूरत है?
इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या और बेटियों को उनका हक न मिल पाने के चलते यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब हमें कानून में और सख्ती लाने की जरूरत है?
कुछ सुझाव:
- बेटियों को पैतृक संपत्ति से वंचित करने वाली वसीयतों पर पुनर्विचार हो।
- अगर बेटी को जानबूझकर हटाया गया हो, तो उसकी कानूनी समीक्षा जरूरी हो।
- वसीयत बनने की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जाए।
विशेषज्ञों की राय क्या कहती है?
वरिष्ठ वकील अनुराधा मिश्रा के अनुसार, “कोर्ट का फैसला तकनीकी रूप से सही हो सकता है, लेकिन सामाजिक रूप से यह अन्यायपूर्ण है। महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित करना, चाहे वसीयत के जरिए हो या किसी और तरीके से, संविधान की भावना के खिलाफ है।”
क्या ये फैसला सभी बेटियों पर लागू होगा?
नहीं, यह फैसला एक खास मामले पर आधारित है। लेकिन इससे एक मिसाल बन सकती है जो भविष्य के मामलों को प्रभावित कर सकती है। यदि वसीयत न हो और संपत्ति पैतृक हो, तो बेटियों को बराबरी का हक मिलेगा।
आज के समय में जब बेटियां हर क्षेत्र में बेटों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, ऐसे में संपत्ति अधिकार भी उनके लिए उतना ही जरूरी है। अगर बेटियों को वसीयत से बाहर रखा जाता है, तो उन्हें कानूनी तैयारी करनी चाहिए। साथ ही, समाज को भी यह समझने की जरूरत है कि बेटी कोई बोझ नहीं है – वह भी घर की मालिक हो सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. क्या बेटियां वसीयत को कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं?
हां, अगर उन्हें लगता है कि वसीयत दबाव में या धोखे से बनाई गई है तो वे इसे कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं।
2. क्या पैतृक संपत्ति में बेटियों को हिस्सा मिलना तय है?
अगर वसीयत न हो और संपत्ति पैतृक हो, तो बेटी को भी बराबर हिस्सा मिलता है।
3. क्या 2005 के बाद भी बेटियों को हक नहीं मिल पा रहा?
2005 के संशोधन के बाद हक मिला है, लेकिन वसीयत होने पर मामला अलग हो जाता है।
4. अगर वसीयत में नाम नहीं है तो क्या किया जा सकता है?
आप वसीयत की वैधता को चुनौती दे सकते हैं और कानूनी सलाह ले सकते हैं।
5. क्या सरकार इस पर कानून में बदलाव कर सकती है?
संभावना है कि भविष्य में कानून और स्पष्ट बनाए जाएं ताकि बेटियों को उनका हक मिल सके।